सरकारी नौकरी और अधिकतम उम्र सीमा में छूट - त्वरित टिपण्णी 💯



हाल ही में राजस्थान सरकार ने ओबीसी वर्ग के पुलिस भर्ती में मिलने वाली अधिकतम उम्र सीमा में 6 साल की छूट वाली प्रावधान को वापस लिया है। तब से खुद को ओबीसी की मसीहा मानने वाली विपक्ष सरकार पर हमलावर है और इसे लोकतंत्र और आरक्षण पर प्रहार बता रही है।
हालांकि राजस्थान सरकार के यह नोटिस हटा लिया है और ओबीसी को जो उम्र में छूट मिलती रही है वह जारी रहेगी, लेकिन फिर भी उम्र सीमा में छूट के नाम पर युवाओं के साथ जो खेल हो रहा है उसको लिखना जरूरी है। बहुत कोई तो सोच ही नही पाते हैं कि इसमें गलत क्या है, ये तो कितना सही नियम है कि 5 साल ज्यादा हमको एग्जाम देने के लिए मिलेगा!

आइए कुछ कॉमन सेंस वाली बातों से जानते हैं कि अलग अलग कैटेगरी के युवाओं को अलग अलग उम्र सीमा में छूट देने के आखिर किसको फायदा हो रहा है और किसको नुकसान हो रहा है। 

UPSC के लिए उम्र सीमा:

सामान्य वर्ग/ EWS: 32 साल 
ओबीसी : 35 साल
एससी/एसटी: 37 साल

SSC के लिए उम्र सीमा:

विभिन्न पदों के लिए 27 से 32 साल तक सामान्य वर्ग के लिए।
Age relaxation यानी इन कैटेगरी के लोगों के लिए अधिकतम उम्र सीमा में छूट: 
SC/ST 5 years
OBC 3 years
PwBD (Unreserved) 10 years
PwBD (OBC) 13 years
PwBD (SC/ST) 15 years

Bihar Police Constable Age limit:

General/EWS : 25 years
OBC Male : 27 years
Female: 28 years
SC/ST : 30 years

यह कुछ परीक्षाओं का एग्जांपल है। ठीक इसी तरह सभी सरकारी नौकरी के परीक्षाओं में अलग अलग जाति और समुदाय के लोगों के लिए अलग अलग अधिकतम उम्र सीमा है। 
इसका फायदा ये है कि जिस परीक्षा को देने के लिए सामान्य वर्ग के 25 साल तक के युवा फॉर्म भर सकते हैं उसी परीक्षा को देने के लिए ओबीसी के युवा 28 साल तक के और एससी एसटी के युवा 32 साल तक एग्जाम दे सकते हैं। इस से उन्हें ज्यादा अटेम्प्ट देने को मिल जाता है। जिस से पास करने की प्रोबेबिलिटी 5- 10% बढ़ जाती है।
फायदा बस इतना ही है। मेरे नजर में नुकसान बहुत है। 
जैसे:
1. किसी और कार्य या रोजगार के लिए उम्र निकल जाना। 
2. नौकरी हो जाने के बाद भी कम ही प्रमोशन मिल जाना, क्योंकि रिटायरमेंट का एज जल्दी आ जाना।
3. 32 के एज में आईएएस बन जाने के बाद भी कभी सेक्रेटरी रैंक तक नही पहुंच पाना।
4. रिस्क लेने वाला उम्र खत्म हो जाना।
5. बाल बच्चा पत्नी परिवार का उलझन नौकरी शुरू होने के पहले शुरू हो जाना। 

जैसे पुलिस भर्ती की ही एग्जाम को देखिए। ब्राह्मण घर का कोई लड़का जो तैयारी कर रहा है वो जैसे ही 25 साल का हो जाएगा उसको पुलिस के नौकरी की तैयारी छोड़नी पड़ेगी। उसके बाद बस यही ऑप्शन बचेगा कि किसी और परीक्षा की तैयारी करे या कहीं जाकर प्राइवेट नौकरी करे या कोई धंधा शुरू करे। लेकिन ओबीसी कम्युनिटी के बच्चे 3 साल और तैयारी करेंगे और 28 साल के होने के बाद छोड़ेंगे। एससी एसटी वाले 30 साल की आयु तक पुलिस की तैयारी करेंगे और फॉर्म भरेंगे। तब तक कितनों की शादी हो चुकी होगी। बच्चे भी हो गए रहेंगे। तब 30 की आयु के बाद नौकरी की तैयारी छोड़कर दिल्ली एनसीआर में जाकर 15 हजार की प्राइवेट नौकरी पकड़ना एक एससी लड़के के लिए उस 25 साल की उम्र में प्राइवेट नौकरी पकड़ने वाले एक ब्राह्मण लड़के से लाख गुना मुश्किल हो चुकी रहेगी। 

फिर आप पूछेंगे की विभिन्न नौकरियों की उम्र सीमा में अलग अलग वर्गों के लिए एकरूपता क्यों नही है?

क्योंकि आज के 70 साल पहले के नीति निर्माताओं ने तब के हालातों के अनुसार सभी वर्गों के लिए उम्र सीमा बनाया था। तब ओबीसी नही हुआ करती थी। एससी एसटी के बच्चे शुरुआती स्कूल की पढ़ाई ही देरी से शुरू करते थे। इसलिए उनकी दशवीं, बारहवीं भी लेट से होती थी। कई लोग 10, 12 के बाद ही पढ़ाई छोड़ देते थे। वैसे लोगों और परिवारों को मुख्यधारा में लाने के लिए उनको ज्यादा उम्र तक भी अवसर देने का कार्य किया जाता था। जो की तब के समय में सही था।
अब जाति कैटेगरी और आरक्षण ये सब राजनीति और वोट बैंक का विषय है। अब राजनीतिक दलों के लिए ये फायदा और वोट का सौदा होता है। राजनीतिक पार्टियां हमको आपको बलि का बकड़ा बनाकर बस वोट पाना चाहती है। 
अब उम्र सीमा को बढ़ाने के लिए, या बढ़ी हुए छूट को न हटाने के लिए विपक्ष वाली पार्टियां आंदोलन करती है। युवाओं को आंदोलन में झोंकती है। युवा भी खुशी खुशी अपना भाव खुद गिराते हुए, ज्यादा उम्र तक नौकरी पाने की लोभ में आंदोलन करते हैं। 

अब युवा जागरूक हो गए हैं। अधिकतर उम्र सीमा को यदि 32-35 तक देखें तो देश में सबसे ज्यादा ओबीसी एससी एसटी की ही जनसंख्या है। सरकार और राजनीति हमेशा से यही चाहती है कि युवा सत्ता से सवाल न करे। युवा को कंफर्ट जोन दो, युवा को किसी न किसी फॉर्म, परीक्षा और तैयारी में तब तक इंवॉल्व कर के रखो जब तक वह परिवार वाला न बन जाए। 32 साल तक 50% आबादी जो ओबीसी है उसके युवा सरकारी नौकरी की तैयारी करते रहेंगे। उसके बाद या तब तक कइयों की शादी हो चुकी रहेगी। बच्चे हो जायेंगे। फिर जैसे तैसे रोजगार खोजने और परिवार चलाने में उनका सारा दिन निकल जायेगा। सरकार और सत्ता से सवाल करने या किसी और के द्वारा किया गया सवाल देखने का उन में न हिम्मत बचेगा न हैसियत। 
ओबीसी एससी एसटी युवाओं को दिग्भ्रमित करने और किसी न कैसी टाइमपास कामों में इंवॉल्व करके रखने का काम है बस अधिकतम उम्र सीमा में छूट वाला बेनिफिट। 

क्या आप आज या जब आप स्कूल में थे तब ऐसा देखे थे की दसवीं क्लास में जो ब्राह्मण बच्चे हैं उनकी उम्र 15-16 है, जो ओबीसी हैं वो 18 साल के हैं, जो एससी एसटी हैं वो 20 साल के हैं??
नही न! अब सबके घर में शिक्षा सही समय पर शुरू हो रही है। जब सभी जाति और वर्ग के बच्चे एक ही साथ एक ही उम्र में 10, 12 और ग्रेजुएशन कर रहे हैं तो सबको नौकरी में एज लिमिट भी समान मिलना चाहिए। 
ज्यादा उम्र तक तैयारी करने के युवाओं का भविष्य कम ही बनता है, ज्यादा का भविष्य अंधकार में ही जाता है। 
35 साल की उम्र में एससी एसटी के लाखों युवा आज भी यूपीएससी और स्टेट पीसीएस की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन 35 साल की उम्र में पास होने वाले युवाओं की तादाद काफी कम है। फिर जो पास नही हो पाते हैं उनकी जिंदगी एक तो इतने उम्र तक फेल होने का दुख, झिझक, कुछ नया शुरू करने का डर (क्योंकि रिस्क लेने वाली उमर निकल चुकी होती है), प्राइवेट नौकरी में जाने पर उनको 35 की एज में भी फ्रेशर ही कहा जाता है और सैलरी 15 हज़ार से ही शुरू होती है। फिर इन सारी परिस्थितियों में एक दो बच्चे, पत्नी और मां बाप के साथ परिवार चला पाना कठिन हो जाता है। 

दूसरा सबसे बड़ा नुकसान है प्रमोशन का। चूंकि रिटायरमेंट का उम्र हर वर्ग का एक समान है। तो जो 22-23 के एज में यूपीएससी किया और जो 34-35 के एज में किया दोनो में 13 साल का अंतर हो जाता है। ये 12 साल का अंतर आपको सर्विस में दिखेगा। आज हालत यह है कि भारत सरकार में सेक्रेटरी रैंक के जितने भी अधिकारी हैं उनमें एससी एसटी के एक भी नही हैं। यहां तक की 50 से ज्यादा विभिन्न मंत्रालयों में अंडर सेक्रेटरी, ज्वाइंट सेक्रेटरी, एडिशनल सेक्रेटरी, अलग अलग योजनाओं के डायरेक्टर आदि जितने भी आईएएस लेवल के बड़े पद हैं एक पर भी एससी एसटी नही हैं। ओबीसी भी अपने संख्या के अनुपात में काफी कम हैं। यह सब इसी उम्र सीमा में छूट के कारण है। सेवा में बड़े रैंक तक वही पहुंच पाते हैं जो कम एज में क्वालीफाई करते हैं।
चूंकि एससी एसटी वर्ग के युवाओं की पहले से मानसिकता बनी रहती है कि मुझे तो 9 अटेम्प्ट मिला है, तो शुरुआती 2-3 अटेम्प्ट वह मज़ाक मज़ाक में ही निकाल देता है। (सब मजाक में नही निकालते हैं, बस मेरे इस लेख में टॉपर एस्पिरेंट्स की बात नही हो रही है, एवरेज की हो रही है, जो फेल होता है, बार बार फेल होता है, और 10 साल के प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी वाले कैरियर में एक भी परीक्षा में फाइनल रूप से चयनित नही हो पाता है और अंत में सरकारी नौकरी नहीं ले पाता है). 

वेकेंसी लिमिटेड है और दिन प्रतिदिन कम ही होती जायेंगी। पूरे देश को छोड़ दे तो हिंदी पट्टी की सबसे बड़ी जगह पटना, प्रयागराज (इलाहाबाद) और दिल्ली में सभी सरकारी नौकरी के तैयारी करने वाले युवाओं की संख्या 1 करोड़ से ज्यादा है। उनमें कई बाल बच्चे वाले, सर के बाल झड़ चुके होने के बाद 30-35 साल के युवा भी हैं। वह युवा निश्चित ही ब्राह्मण/सवर्ण आदि वर्ग के नही होंगे क्योंकि इनकी अधिकतम उम्र सीमा 30-32 से ऊपर नही जाती है। 


ये पढ़िए:


अब यदि आप राजद समर्थक या लालू भक्त हैं तो उनको जाकर बताइए कि:
❗राजस्थान के ओबीसी लड़के 27 साल की उम्र तक अभी भी पुलिस की नौकरी के लिए योग्य रहेंगे।
❗पुलिस की नौकरी करते हुए, बेरोजगार रहते हुए, या जब भी जैसे भी मन हो तो कांवड़ ले जा सकते हैं, नही मन हो तो भी कोई जबरदस्ती नहीं है।
❗ओबीसी में बस पिछड़ा ही आता है दलित नही इसलिए बेवजह दलितों को न लपेटें। 
❗धर्म की यहां कोई आड़ नही ली गई है, इसलिए बिना मतलब का धर्म धर्म हिंदू हिन्दू न करें। यदि करेंगे तो फिर आप में और उन में कोई अंतर नही बचेगा।

 
कंक्लूडिंग ओपिनियन: 

जिसको कोई एग्जाम पास करने की क्षमता होगी, जिसके किस्मत में कोई एग्जाम पास कर अफसर और कलेक्टर बनना लिखा रहेगा वह ग्रेजुएट होने के 4 साल तक में हो जायेगा। मैक्सिमम 22-23 साल के होते होते सभी युवा ग्रेजुएट हो ही जाते हैं। इस हिसाब से 28 साल तक ही होना चाहिए सभी सरकारी परीक्षाओं के लिए उम्र सीमा। दिव्यांगो को कुछ सालों की छूट होना चाहिए क्योंकि उनके लिए जीवन थोड़ी कठिन जरूर होती है। बाकी जनरल, ओबीसी, एससी, एसटी वाले सभी के लिए एक समान और 28 साल तक ही लिमिट होना चाहिए जिस से युवा सही समय पर फेल होकर इस जाल से निकले और कोई अन्य कार्य या रोजगार में लगे। 
यह सभी युवाओं के लिए हित में होगा। Complexity भी कम होगी। सबका भला भी होगा। 
कोचिंग शिक्षकों का तंत्र को 35-35 साल तक युवाओं को उम्मीद और मोटिवेशन देकर जो शिक्षा को धंधा और माफिया बने हुए है उस सब पर भी थोड़ा लगाम लगेगा। 

जय हिंद, जय भीम! 

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