इस आर्टिकल में आप जानेंगे की निजीकरण क्या है? क्या क्या इसके फायदे और नुकसान हो सकते हैं? क्या सरकार को एक बार में ही सम्पूर्ण निजीकरण कर देना चाहिए या फिर थोड़े थोड़े किस्तों में? निजीकरण को और बेहतर ढंग से कैसे लागू किया जा सकता है? ऐसे तमाम प्रश्नों और शंकाओं का समाधान आपको अंतिम में मिल चुका रहेगा।
( आप इसके बारे ज्यादा डिटेल में गूगल करके पढ़ सकते है)..
चलिए पहले कुछ टर्म्स समझ लेते हैं❗
Disinvestment और privatisation में अंतर:-
विनिवेश(Disinvestment) में सरकार अपनी कंपनियों के कुछ हिस्से को निजी क्षेत्र या किसी और सरकारी कंपनी को बेचती है।
निजीकरण (Privatisation) में सरकार अपनी कंपनी की 51 फीसदी या उससे ज़्यादा हिस्सा किसी कंपनी को बेचती है जिसके कारण कंपनी का मैनेजमेंट सरकार से हटकर ख़रीदार के पास चला जाता है।
कह सकते हैं कि disinvestment leads to privatisation, यानि disinvestment जब 50 प्रतिशत से ज्यादा का होगा तब मैनेजमेंट प्राइवेट सेक्टर के पास चला जाएगा और privatisation कहलाएगा।
अक्टूबर 2019 तक भारत में 10 महारत्न, 14 नवरत्न, मिनीरत्न क्लास 1 में 61 और मिनीरत्न क्लास 2 में 12 सरकारी कंपनियां है।
( सूची देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)
FDI (Foreign Direct Investment) क्या है?
किसी विदेशी व्यक्ति या कंपनी द्वारा किसी भारतीय कंपनी में लगने वाले पैसे को विदेशी निवेश कहा जाता है। विदेशी निवेशक उस कंपनी का शेयर, बोंड खरीद सकता है या खुद नया कारखाना लगा सकता है।और वह अपने पूंजी से प्राप्त आय को अपने देश ले जा सकता है।
पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) क्या है?
सरकार के पास इतनी धन और मैनपॉवर नहीं होती है कि हजारों करोड़ की योजनाओं को अकेले पूरी कर सके। ऐसी स्तिथि में सरकार प्राइवेट कंपनियों के साथ मिलकर एग्रीमेंट करती है और दोनों मिलकर योजनाओं को पूरा करती है। देश में बहुत सारे हाईवेज, दिल्ली मेट्रो इसी पार्टनरशिप से बने हैं।
▶️क्या क्या फायदे निजीकरण से हो सकते हैं!
निजीकरण के फायदे:-
1) बेहतर सेवा का मिलना।
साफ- सफाई, सुरक्षा, कम समय में काम हो जाना,
2) भ्रष्टाचार कम होना।
लाल फिताशाही, लेटलतीफी, जैसे समस्याओं से छुटकारा।
3) इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित होगा। modernisation होगा।
4) सरकार की आमदनी(रेवेन्यू) बढ़ेगी।
अभी जितने भी PSU's (public sector undertakings) हैं, उनका मोटिव है no loss no gain. प्राइवेटाइजेशन होने से उन सारे पब्लिक सेक्टर्स के कंपनी से एक निश्चित आय सरकार को मिलती रहेगी, जिसे सब्सिडी के रूप में या विकास कार्यों में लगाया जा सकता है।
5) राजनीतिक मिलीभगत कम होगा।
( Less Political interference).
6) कॉम्पटीशन बढ़ेगा, जिस से कंज्यूमर को फायदा होगा। 2-3 अलग अलग कंपनियां यदि किसी सेक्टर को संभालेगी तो उनके आपसी प्रतियोगिता से हमें फायदा होगा।
अब देखते हैं कि क्या क्या संभावित नुकसान हो सकते हैं जिस कारण से इसका इतना विरोध हो रहा है!
निजीकरण से नुकसान:-
1. अच्छी सेवा पाने के लिए हमें ज्यादा रुपया खर्च करना पड़ेगा। या कहें महंगाई बढ़ेगी।
2. चूंकि भारत में बेरोजगार जनसंख्या बहुत ज्यादा है इसलिए लेबर कॉस्ट बहुत कम है, तो निजीकरण हो जाने से कर्मचारियों को पहले के तुलना में काम ज्यादा करना पड़ेगा और वेतन कम मिलेगा।
3. विदेशी कंपनी के स्वामित्व हो जाने पर अपने देश का पैसा दूसरे देश जा सकता है।
4. देश के जनसंख्या का बहुत सारा हिस्सा निजी क्षेत्र को अफोर्ड नहीं कर पाएगा। जैसे सरकारी स्कूलों में सबको पता है कि पढ़ाई अच्छी नहीं होती, फिर भी लाखों परिवार के बच्चे सरकारी विद्यालयों में ही पढ़ते हैं, कल हो के यदि सरकारी स्कूल बचे ही नहीं तो वो अपने बच्चों को नहीं पढ़ा पाएंगे। उच्चतर शिक्षा के लिए तो अच्छे खासे आय वाले लोग भी सरकारी संस्थानों में ही दाखिला करवाते हैं।
5. रेल की बात करें तो निजी ट्रेनों को समय से गंतव्य पहुंचाने के लिए सरकारी ट्रेनों को जबरन रोका जाएगा जिस से पुरानी वाली सरकारी ट्रेन और धीमी सफ़र करवाएंगे।
पुरानी सरकारी ट्रेनों में ज्यादातर लोअर मिडिल क्लास या गरीब लोग ही यात्रा करेंगे और उनका शिकायत सुनने वाला कोई नहीं रहेगा।
6. पारदर्शिता(transparency) की कमी रहेगी। जनता आम सेवाओं और सुविधाओं के लिए सरकार से सवाल कर सकती है लेकिन निजीकरण में यह संभव नहीं रहेगा।
मैं क्या सोचता हूं? इस बारे में!
मेरे विचार से निजीकरण सही है, इस से psu's का भी भला होगा और सरकार भी पूरी तरह से उसी सेक्टर्स पे ध्यान लगाने लगेगी जिस से राष्ट्र की सामाजिक एवं आर्थिक विकास और तेज़ हो।
परन्तु पूर्ण निजीकरण करने से पहले सरकार को एक कानून लाना चाहिए, जिसमे निम्नलिखित समस्याओं का समाधान हो:-
⚫वर्तमान स्थिति को देखते हुए सभी पदों के लिए न्यूनतम मजदूरी/वेतन निर्धारित कर देना, जिस से प्राइवेट कंपनी लाभ कमाने के होश में कम कीमत में काम न करवाएं।
⚫working hour भी निर्धारित कर देना।
⚫जहां तक संभव हो सके, विदेशी कंपनियों को टेंडर नहीं देना।
⚫workplace पे स्थानीय लोगों की ज्यादा भागीदारी रखना।
⚫जो काम छोटे कंपनियां भी कर सकती है, उसके लिए उनको भी टेंडर/मौका दिया जाना।
ऐसे कुछ सुधारों को अमल करने से आर्थिक, सामाजिक सुरक्षा एवं विकास ज्यादा सही से हो सकती है। देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए कुछ सेक्टर अभी भी ऐसे हैं जिस में निजी क्षेत्र की भागीदारी जितना कम हो उतना सही है जैसे कि शिक्षा में। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे सेक्टर्स में ज्यादा से ज्यादा सरकारी निवेश की अभी जरूरत है। सुरक्षा से संबंधित जैसे एटॉमिक एनर्जी, गोला बारूद, तेल, कोयला, खदान संबंधित, जैसे सेक्टर्स सौ प्रतिशत पब्लिक सेक्टर के लिए आरक्षित रहना चाहिए।
कुल मिला के ये कहा जा सकता है की पॉलिसी कोई भी ज्यादा खराब या ज्यादा अच्छी नहीं होती। सरकार किस ढंग से उसे लागू कर पाती है ये ज्यादा महत्वपूर्ण है।
________________________________
अपने तक ही इस ब्लॉग को कृपया सीमित न रखें। अपने जान पहचान वालों तक भी शेयर करें, जो ऐसे टॉपिक्स में रुचि रखते हों। नीचे कमेंट कर के अपना विचार अवश्य रखें।
अच्छा, बहुत अच्छा जैसे शब्द लिख के तो आप मुझे प्रोत्साहित कर ही सकते हैं😂।
धन्यवाद।
आशीष आनंद
मधुबनी, बिहार
7545086889(केवल वॉट्सएप)
Achha bahut achha😂
ReplyDeleteWaahhhh
ReplyDelete