जनसंख्या वृद्धि या कचड़ा वृद्धि?

जनसंख्या नियंत्रण तब की भी जरूरत थी, लेकिन इसके दूरगामी दुखद परिणाम तब नही दिखते थे। अब दिखने लगे हैं। 

लालू जी अपने समय में यदि फैमिली प्लानिंग जानते होते तो आज तेजस्वी नही रहते। जो की भविष्य के अच्छे मुख्यमंत्री हो सकते हैं।


2011 में बिहार की जनसंख्या 10.38 करोड़ थी जो 2023 में बढ़कर साढ़े 13 करोड़ हो गई। 

जिनका नारा है - जितनी आबादी उतना हक, वही सबसे ज्यादा रफ्तार से आबादी भी बढ़ा रहे हैं। 

गरीबी से ज्यादा दिखावटी गरीबी है। ठीक ठाक स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग वाले परिवार, बाइक, टीवी अफोर्ड करने वाले परिवार, सेमी फिनिश्ड घर में भी सुख सुविधा के साथ रहने वाले परिवार सरकारी सर्वे में खुद को गरीब ही बताते हैं। चाहें वो किसी भी जाति के हों, सामाजिक स्थिति का झूठ जानकारी देना इनका स्वभाव है।  

बीपीएल में नाम डलवाने के लिए ये 2000 का घुस भी देने के लिए तैयार हैं। जन वितरण प्रणाली से मिलने वाला चावल गेहूं ये खुद न खाकर बेच लेते हैं।

भगवान का प्रसाद समझकर कई लोग जनसंख्या बढ़ा रहे हैं, की अल्लाह दिए हैं तो वही पोसेंगे भी। और हकीकत में केंद्र सरकार राज्य सरकार इनका पोषण कर रहा है। 

हर जेनरेशन को सरकार मुफ्त में पढ़ाए, चावल गेंहू दे, आवास दे, अन्य सुविधा दे, तो आखिर कब तक देते रहे? पीढ़ी दर पीढ़ी करोड़ों जनता का पोषण करना और साथ साथ देश का भी विकास करना, और तब जनता से गाली सुनना हर सरकारों का रोज का काम हो गया है। 


AC 3A ट्रेन में यात्रा करने वाले निश्चित ही मिडिल क्लास में ठीक ठाक परिवार के ही होंगे जिनके घर शिक्षा, उच्च शिक्षा, रोजगार आदि अवश्य पहुंचा होगा। फिर भी इन में से कई को न हगने आता ना धोने। ट्रेन में टॉयलेट गंदा कर के निकलेंगे, जहां खायेंगे वही रैपर फेकेंगे, मूंगफली का छिलका ट्रेन कोच के फर्श पर फैला देंगे। 

कोई भी पब्लिक प्लेस को यह समझना की ये सरकार की है, और सरकार को एक अमीर आदमी समझना, और उसको लूटने का इरादा रखने वाले अधिकतर आम भारतीय का जिंदगी ऐसे ही संघर्ष और खुशी के बीच तालमेल बिठाते निकल जाता है😃

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