आरक्षण - कितना सही, क्या गलत?

मेरे इस लेख का सबसे पहला पंक्ति यह है कि " मैं आरक्षण का समर्थक हूं। " अब आगे की बात में बहुत जगह लेकिन किंतु परंतु जैसे शब्द आपको लिखा हुआ मिलेगा। इसलिए पूरा पढ़िए, और अपनी सहमति या असहमति आप नीचे कमेंट्स में अवश्य बताइए। 
( नोट : मैं लेख में जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर सकता हूं, क्योंकि बाबासाहेब जी का संविधान इसका इजाजत देता है )

आज की तारीख में जो भी व्यक्ति आर्थिक रूप से संपन्न है चाहे वो ब्राह्मण हो या चमार हो, वह सामाजिक रूप से भी मजबूत है। जो गरीब है वह कमजोर है। शहरों में तो अब लोगों के पास इतना वक्त हीं नहीं रहा कि लोग जाति मजहब पर बात कर सकें (पत्रकार और नेता को छोड़ के) लेकिन गांव ( या शहर में ही ) आप नजर घुमा के देखिए कि पिछड़ा कौन है? दूर दूर तक जो गरीब है वही पिछड़ा दिखेगा। जो लोअर मिडिल क्लास है वही पिछड़ा है। 

SC/ST/OBC बंधुओं का इसपर क्या कहना है :-
आप एससी एसटी ओबीसी समुदाय के किसी भी व्यक्ति से आरक्षण की बात कीजिए, वो यही बोलेगा कि इसका कोई लाभ नहीं है। खास कर के ओबीसी वाले तो खुद को जनरल ही मानते हैं, जोकि कुछ हद तक सही भी है। क्योंकि परीक्षाओं में फॉर्म शुल्क और कटऑफ लगभग एक जैसा ही अब होने लगा है। ये लोग आपको अलग अलग परीक्षाओं के कटऑफ का एग्जांपल देकर बताएगा कि देखिए यहां इस परीक्षा में जनरल और ओबीसी के कटऑफ आसपास ही है, यहां EWS से ज्यादा कटऑफ OBC/SC का गया है। फिर आप कहेंगे की जब बराबर ही है तो आरक्षण छोड़ क्यों नही देते आप? अगला बात वो बोलेगा कि जब तक जाति प्रथा है तब तक आरक्षण रहेगा। तुम जाति खत्म करो आरक्षण अपने आप खत्म हो जाएगा। आरक्षण मेरा मौलिक अधिकार है, हम इसको नही छोड़ सकते...जय भीम जय संविधान। 
ये लोग सोशल मीडिया में जपते हैं कि जाति प्रथा खत्म करने का बात कोई नहीं करता और आरक्षण हटाने का बात सब करता है। 

तो पहले बात कर लेते हैं कि जाति प्रथा कैसे खत्म हो??

आपके पास क्या सबूत है कि आप फलाने जाति के हैं? मेरे ख्याल में एक ही सबूत है जाति प्रमाण पत्र, जो कि सामान्य वर्ग के लोगों के पास है ही नही। जो प्रमाण पत्र बनवा के रखें हुए हैं उनको यदि जाति खत्म करना है तो अपना जाति प्रमाण पत्र ( caste certificate) फाड़ के फेक दें। आप जातिवाद का विरोध कीजिए, जातिवाद खत्म हो जाएगा। बशर्ते ये ध्यान रहे कि आप खुद किसी जाति से ताल्लुक रखते हैं। जाति खत्म होगा तो हमारा आपका सबका खत्म होगा। 

लेकिन आप खुद हर जेनरेशन में प्रमाण पत्र बनवाते आ रहे हैं, रिजर्वेशन क्लेम करते हैं, और सोशल मीडिया पर आरक्षण हटाओ पोस्ट देखकर भड़कते भी है। 
आप लोगों का मानना है कि ब्राह्मणों ने जातिवाद को बढ़ावा दिया है। इसके पीछे आपके पास शायद ही कोई लॉजिक हो क्योंकि आप में से 95% लोगों ने कभी जाति आधारित भेदभाव महसूस नहीं किया होगा। 
हिंदी मीडिया और राजनीतिक लोगों के व्यक्तिगत स्वार्थ और खुद की रोटी सेंकने के लिए जाति धर्म पर विश्लेषण और विवाद किया जाता है। 

जनरल ओबीसी एससी एसटी ये बस चार कैटेगरी है। इसके अंदर हजारों को संख्या में जाति है। हिंदू और मुस्लिम दोनो में है। जनरल कैटेगरी में लोग समझते हैं कि ब्राह्मण आता है बस, लेकिन ब्राह्मण में भी अलग अलग सब कैटेगरी है, ये किसी को नही पता। क्यों? क्योंकि ये unreserved हैं, इनको आरक्षण मिलता ही नहीं, इसलिए इनको जाति प्रमाण पत्र बनवाने का ही जरूरत नहीं। बस लोग अपने नाम में झा मिश्रा शुक्ला दुबे चौबे आदि लगा लेते हैं, मेरे जैसे कई लोग वो भी नही लगाते😎 

अब ओबीसी एससी और एसटी के अंदर हजारों जातियां है। यहां तक कि पूरे देश मे हजार से ज्यादा जातियों को 1950 के बाद आरक्षण मिला है। कई जातियों को तो आज आरक्षण मिलना शुरू हुआ है। कई जातियां तो आज भी हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में खुद को आरक्षण सूची में लाने के लिए फाइलों में बंद है। और कमाल कि बात यह है कि आजादी के 75 साल बाद आज 2021 में कई जातियों को जनरल से ओबीसी बनाया जा रहा। अब मेरे नजर में तो दो ही तर्क बचता है, या तो यह आरक्षण बस राजनीतिक स्टंट है, या दूसरा कि बाबा साहेब आंबेडकर समेत पिछले 75 साल में जितने भी सीएम पीएम हुए वो उस समुदाय के पिछड़ेपन को नहीं देख पाए, उन सबसे गलती हो गया😜 इसलिए आज के वर्तमान सीएम को इन जातियों को आरक्षण में डालना पड़ रहा है।

इंटरकास्ट मैरिज :

कुछ लोगों का मानना है कि अंतर्जातीय विवाह करने से भी जाति प्रथा खत्म हो सकता है। एससी एसटी वाले तर्क देते हैं कि सामान्य वर्ग वाला कोई भी आदमी अपनी बहन का विवाह हम लोग से नही करना चाहता है, इसका मतलब यह है कि वह हमलोग को छोटा मानता है। विवाह दो लोगों और दोनो के परिवारों के बीच का संबंध है। दोनो लोग जहां करने से सहमत होंगे वहां शादी करेंगे। अपने वर्ग के अंदर भी कोई जरूरी नहीं है कि सबका सबसे शादी हो ही जाए। न सरकार न संविधान इस पर कोई फैसला ले सकती है। शादी आदमी के व्यक्तिगत स्वेच्छा पर निर्भर है। और बहुत लोग अब अंतर्जातीय विवाह कर भी रहे हैं। जब बिहार के मेरे एक छोटे से जिले में ऐसे विवाहों की संख्या सैकड़ों में है तो महानगरों और अन्य शहरों में ये और भी ज्यादा हो रहा होगा। 
सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि किसी महिला या व्यक्ति की जाति का निर्धारण जन्म के आधार पर होता है और शादी के बाद वो अपनी जाति को बदल नहीं सकता है। इसलिए इंटरकास्ट मैरिज वाले पति पत्नी का बच्चा आरक्षण का लाभ ले सकता है। 


क्या जाति के आधार पर पेशा करने वाले व्यक्ति को सरकारी सहायता या सब्सिडी आदि मिलना चाहिए?

सीबीएसई 12वीं हिंदी किताब में एक लेख है " श्रम विभाजन और जाति प्रथा " जो आंबेडकर जी के द्वारा लिखा गया है। उस लेख में उन्होंने जन्म के आधार पर जाति और जाति के आधार पर पेशे का निर्धारण को गलत बताया है। आज के भारत में सामाजिक न्याय की बात करने वाले जितने भी नेता हैं, आंबेडकर को आदर्श मानने वाले जितने भी नेता हैं, सब इस बात का समर्थन करते हैं कि जाति के आधार पर श्रम ( रोजगार ) का विभाजन होना चाहिए। ये चीज इनके द्वारा बनाई गई पॉलिसी से साफ है। 

मछली पालन करने वाले को मछुआरा बोलते हैं। और इनकी एक जाति है जिसका नाम है मल्लाह। आज आजादी के 75 साल बाद भी मछली पालन के लिए सब्सिडी बस इसी जाति के लोगों को मिलता है। सब्सिडी एक प्रकार का प्रोत्साहन ( आर्थिक सहायता ) है जो किसी कार्य को और बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से दिया जाता है। दूसरे जाति के लोग मछली पालन तो कर सकते हैं लेकिन उनको कोई सरकारी सहायता नहीं मिलता। ठीक ऐसे ही बढ़ई, नाई जैसे जाति वाले के लिए भी सरकारी मदद है, बशर्ते उनको अपनी जाति वाला पेशा करना पड़ेगा। 
प्रूफ का लिंक :

और कमाल कि बात यह है कि सामाजिक न्याय की बात करने वाले कोई भी लोग इस जाति आधारित श्रम का विरोध नही करते। कईयों को तो ये पता भी नही होता। 

हमारा मानना है कि जाति के आधार पर अवश्य सुविधाएं मिलनी चाहिए, परंतु वह सुविधा इसलिए दिया जाए कि आदमी हो सकता है उस पेशा से निकलना चाह रहा हो लेकिन नही निकल पा रहा हो तो वो सुविधा की मदद से कोई दूसरा पेशा कर सके। जैसे नाली शौचालय सफाई करने वाले को जाति के आधार पर सुविधा मिलना चाहिए क्योंकि इस पेशे में एक ही जाति के सारे लोग हैं। बढ़ई, नाई, मछुआरा जैसे केस में पेशा के नाम पर सब्सिडी मिलना चाहिए न कि जाति के नाम पर। जो भी आदमी मछलीपालन करना चाहे सबको सब्सिडी मिले। ऐसे नियम बनाने से ये जाति के आधार पर पेशे का कुचक्र टूटेगा, जो असली सामाजिक न्याय कहलाएगा। लेकिन न केंद्र न राज्य, कोई ऐसा नियम नही बनाना चाहता। पर्दा के पीछे सारा योजना जाति के नाम पर ही चलता है, और भाषण मारने समय उनको दलितों, पिछड़ों के कल्याण का गप्प मारने में मजा आता है।

ओबीसी / एससी / एसटी वालों से एक अपील : 

आप सामाजिक आर्थिक रूप से संपन्न हैं तो आप आरक्षण लेना छोड़िए, तब आपके जगह पर आपही के समुदाय के निचले तबके के गरीब लोग इसका लाभ ले पाएंगे और जब वो मुख्यधारा में आ जाएंगे वो भी आरक्षण छोड़ते जायेंगे। ऐसे में खुद जाति प्रथा भी समाप्त होती जायेगी और आरक्षण व्यवस्था भी सुचारू रूप से चलता रहेगा। और एक दिन ऐसा आयेगा जब सब आरक्षण के दायरे से बाहर निकल जायेंगे। फिर कोई पिछड़ा नही बचेगा। लेकिन नही, आपको तो हर जेनरेशन आरक्षण भी लेना है और बहस भी करना है। 

दूसरी बात आप अपने नाम से जातिसूचक शब्द हटा लीजिए, जाति खुद समाप्त हो जायेगा। भारत में आपको लगभग सभी लोगों के नाम के पीछे जातिसूचक शब्द लिखा हुआ अवश्य मिलेगा। और वही लोग सोशल मीडिया पर जाति प्रथा हटाने के पक्ष में ज्ञान देते मिलेंगे। 
SC/ST/OBC समाज के लोग कैसे खुद के समाज के लोगों को धोखा दे रहे हैं? 

आप किसी भी सरकारी नौकरी के रिजल्ट, आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम, डीयू, बीएचयू जैसे शैक्षणिक संस्थानों में चले जाइए, SC/ST/OBC समुदाय के ज्यादातर वही लोग मिलेंगे जो अब सामाजिक और आर्थिक रूप से ऊपर उठ चुके हैं और जिनको आरक्षण की जरूरत नहीं है। जिनके पास पर्याप्त संसाधन है बस वही आरक्षण का लाभ ले पाते हैं, क्योंकि आज 21वीं शताब्दी में प्रतिस्पर्धा बहुत है, कुछ गिने चुने सीट्स के लिए लाखों लोग आवेदन करते हैं, ऐसे में जो समृद्ध OBC/SC/ST परिवार के बच्चे होते हैं उनके पास पढ़ने के लिए पर्याप्त संसाधन होता है, वो यदि General Open Category से भी परीक्षाएं दें फिर भी उत्तीर्ण कर जायेंगे लेकिन वो बच्चे आरक्षण वाली सीट से परीक्षाएं देकर पास करते हैं। और गरीब, पिछड़े, सामाजिक रूप से हाशिए पर रहने वाले परिवारों के बच्चे जिनके पास उचित संसाधन का अभाव रहता है वो पास नही कर पाते हैं। 
⚫आजादी के बाद से पिछले 75 साल में OBC/SC/ST समाज के जितने भी लोग सरकारी और निजी सेवाओं में अच्छे पद तक पहुंचें हैं, उन सभी के बच्चे आज भी आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। 
⚫जितने भी मंत्री सांसद विधायक आदि बने हैं उनका परिवार आज भी आरक्षण का लाभ ले रहा है। 
इस अच्छे और कॉमन एग्जांपल के आधार पर इस चीज को समझिए :
मेरा विधानसभा क्षेत्र आरक्षित क्षेत्र है, और यहां से बस SC उम्मीदवार ही चुनाव लड़ और जीत सकते हैं। वर्तमान में मेरे विधायक डॉ० रामप्रीत पासवान जी हैं जो कि शिक्षा में पीएचडी किए हुए हैं और पहले शिक्षक भी रह चुके हैं। अभी ये लगातार 3 टर्म से विधायक और वर्तमान में पीएचईडी मंत्री भी हैं। अब ये महोदय यदि इतने पढ़ने लिखने और 15 साल तक विधायक रहने के बाद खुद को पिछड़े वर्ग से बाहर नही निकाल पाए तो ये अपने विधानसभा क्षेत्र के जनता का क्या विकास कर पाएंगे? और यदि ये खुद को पिछड़ा नही मानते हैं तो रिजर्व सीट से क्यों विधायक बने हुए हैं? क्या बस जाति में नीचे होने के कारण एक आदमी को और उसके परिवार को अभी और 50 साल बाद तक भी आरक्षण का लाभ मिलते रहना चाहिए? यदि आप इस चीज का समर्थन करते हैं तो आप धोखे में हैं। यह आदमी अपने ही समाज के और बाकी उम्मीदवारों का भी रास्ता रोक रहा है और खुद को भी अभी तक पिछड़ा मान रहा है। अब ये आदमी सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक रूप से इतना मजबूत होने के बाद भी यदि खुद को पिछड़ा मानता है और अगड़ा नही बनना चाहता है ( क्योंकि आरक्षण नहीं छोड़ना चाहता है) तो क्या ऐसे में भारत कभी पिछड़ेपन से बाहर निकल पाएगा?
ऐसे न जाने देशभर में कितने लोग हैं। और सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि इनके समाज के लोग ही इनका विरोध नही करते। दलितों को लगता है कि उनका हक सवर्ण खा रहा है, लेकिन हकीकत में उनका हक उनके समाज के लोग जो सक्षम हो चुके हैं वो खा रहे। अब यदि कल के डेट में एक इस विधायक का बेटा और एक मेरा एससी दोस्त, दोनो किसी चीज की परीक्षा में बैठेंगे, तो 99% चांस है कि वो विधायक का बेटा ही सफल होगा, क्योंकि उसके पास आरक्षण के साथ साथ विभिन्न तरह के वैसे संसाधन भी उपलब्ध है जो पढ़ाई को और आसान बनाता है। 

आरक्षण जाति प्रथा को और बढ़ावा देता है। पर कैसे? :
यदि आपको किसी खास जाति में जन्म लेने के कारण, यदि आपको जाति के नाम पर ज्यादा अवसर, ज्यादा सुविधाएं और ज्यादा फायदे मिलते हों तो आपका उस जाति के प्रति कट्टर रहना स्वाभाविक है। अतः आरक्षण के कारण जातिप्रथा और बढ़ती ही जा रही है। 
" जातिप्रथा एक ऐसी व्यवस्था है जिसपर किसी का कोई वश नहीं है, बस जन्म के आधार पर आदमी कि जाति तय हो जाती है। अब अगर वह आदमी अपने कर्म के आधार पर जिंदगी में खूब आगे बढ़ जाता है फिर भी उसके नाम के साथ पिछड़ा का टैग क्यों लगा रहे? संविधान में तो यह व्यवस्था दी गई है कि आप आरक्षण छोड़ सकते हैं लेकिन हकीकत में कितने लोग छोड़ते हैं? पूरे बिहार में मेरे नॉलेज और रिसर्च के आधार पर बस पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ही एकमात्र ऐसे इंसान है जिन्होंने सपरिवार आरक्षण छोड़ने की घोषणा की हुई है। "

आजादी के 75 साल बाद भी यदि कोई व्यवस्था अगर IAS,IPS, सांसदों, विधायकों, अन्य सरकारी प्राइवेट जॉब करने वालों को यदि पिछड़ापन से बाहर नही निकाल सकती, फिर तो इस व्यवस्था का कोई मतलब ही नहीं बनता। 

एससी एसटी ओबीसी के हक के लिए लड़ने वाले सारे नेता गरीब से अमीर हो गए, लेकिन वो असली में जिनके हक के लिए लड़ना शुरू किए थे उनकी स्थिति आज भी पहले जैसे ही है। 

140 करोड़ जनता की इस देश में ट्विटर पर एक लाख ट्वीट कर देने से, दिलीप मंडल जैसे जातिवादी मानसिकता के लोगों द्वारा किसी चीज का समर्थन कर देने भर से किसी चीज के पक्ष में निर्णय लेना बेवकूफी है। 
यह ट्वीट देखिए :
तेजस्वी यादव बिहार में विपक्ष के सबसे बड़े नेता हैं और भविष्य के संभावित मुख्यमंत्री भी हैं। इनके अनुसार नीतीश सरकार ने सामान्य और पिछड़े वर्ग का कटऑफ बराबर करवा दिया है। अब इनको कोई समझाए कि कटऑफ वह मिनिमम मार्क्स होता है जिससे ज्यादा अंक लाने वाले सभी उम्मीदवार पास घोषित किए जाते हैं। और अब विकास बढ़ने के कारण,पढ़ाई लिखाई की सुविधा बढ़ने के कारण, अवेयरनेस बढ़ने के कारण रिजर्व कैटेगरी वाले अभ्यर्थी भी अच्छी पढ़ाई करने लगे हैं और वो भी ज्यादा स्कोर करने लगे हैं जो की एक समाज के लिए एक पॉजिटिव संकेत है। इसलिए सामान्य और आरक्षित वर्ग का कटऑफ में बहुत कम का अंतर देखने को मिलता है। लेकिन ये चीज इन जातिवादी नेताओं के समझ से पड़े है। यदि पिछड़े वर्ग के लोगों का तरक्की दिखने लगेगा फिर इन नेताओं का दुकान बंद हो जायेगा, जो पिछड़े के नाम पर अपना राजनीति चमकाते हैं और अपने समुदाय के लोगों का हक खुद खाते हैं। 

जिंदगी में किन किन अवस्थाओं पर एक ही व्यक्ति अलग अलग बार आरक्षण का लाभ लेता है:-
फिर जब मैं आरक्षण का समर्थक हूं तो मेरे ख्याल में ये कैसा होना चाहिए?

भारत जैसे देश में यह सर्वे करना अत्यंत कठिन है कि कौन पिछड़े हैं और आगे बढ़ चुके हैं।क्योंकि यहां जो आर्थिक सामाजिक रूप से समृद्ध भी हैं वो भी सर्वे के समय खुद को संसाधनविहीन गरीब बतलाते हैं। परंतु फिर भी आज आधार और पैन के माध्यम से लोगों को ट्रैक करना काफी आसान हो गया है। इसलिए आरक्षण के सही हकदारों का पता लगाना कठिन जरूर है पर असंभव नही। 

📌किसी भी व्यक्ति को एक बार सांसद/ विधायक ( MP/MLA) बन जाने के बाद दोबारा आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। 
📌इनकम टैक्स भरने वाले किसी भी व्यक्ति या उसके परिवार को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। 
📌सरकारी या प्राइवेट नौकरी में अच्छे पद ( वैसे पद जहां पहुंचकर आदमी सामाजिक आर्थिक रूप से मजबूत बनता है) वालों को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए।
📌शिक्षा - चिकित्सा - सुरक्षा ( Teaching - Healthcare - Defence ) ये नौकरी में आरक्षण नहीं हो। 


स्कूलों/कॉलेजों की सीट पर आरक्षण अवश्य होना चाहिए, लेकिन जो असली हकदार हैं बस उन्ही को मिले। हम तो यह भी मांग करते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेक्टर का पूर्ण सरकारीकरण हो। सारे शिक्षण संस्थान सरकारी ही रहें। फिर सबको समान सुविधा मिलेगा, और शिक्षा के नाम पर जो लूट मची है वह बंद हो जाएगी। 

या

सबसे सही तरीका है कि हर आदमी ( अभी जो भी पिछड़े हैं) को अपने जीवनकाल में एक बार बस एक बार आरक्षण मिले। अब वह उस आदमी या उसके पेरेंट्स पर निर्भर है कि वो कहां इस चीज का सही उपयोग कर सकें। अभी वर्तमान व्यवस्था के अनुसार एक आदमी को प्राइमरी / सेकेंडरी शिक्षा ( कुछ सिलेक्टेड स्कूलों में ) फिर कॉलेज की शिक्षा फिर नौकरी फिर प्रमोशन, मतलब जब जिस उद्देश्य के लिए एंट्रेंस एग्जाम होता है सब में आरक्षण मिलता है। इन सब के बजाय किसी एक जगह पर बस एक बार मिलना चाहिए, आपको जहां उपयोग करना है कीजिए। 
मैं सामान्य वर्ग से हूं,मेरे साथ एक आरक्षित कोटा का बच्चा IIT/AIIMS जैसे टॉप संस्थानों में एडमिशन लिया, अब 4-5 साल की ग्रेजुएशन करने के बाद जब शैक्षणिक रूप से वह मेरे बराबर हो ही गया है, आईआईटी में पढ़ने के कारण उसका सोशल स्टेटस भी अच्छा हो गया है फिर उस बच्चे को ग्रेजुएशन करने के बाद यूपीएससी का किसी अन्य सरकारी नौकरी के लिए आरक्षण का लाभ क्यों मिले? इस से अच्छा उसके जगह पे यदि किसी छोटे कॉलेज से पढ़े गरीब बच्चे को ही बस आरक्षण मिले तब सही चीज है। ऐसे अनेक सुधार की आवश्यकता है। 

हम जाति आधारित आरक्षण का ही समर्थन करते हैं परंतु यहां जाति प्लस आर्थिक दोनो दृष्टिकोण को देखा जाए। हर 10 साल में इस चीज का जनगणना के साथ साथ विश्लेषण हो और OBC/SC/ST में से कुछ परिवारों को GENERAL में डाला जाए। ऐसा करने से जिनको जरूरत है उनको एक निश्चित समय तक लाभ मिलता रहेगा और जब वो सक्षम हो जाएंगे तब उनको आरक्षण के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा। ऐसा करने से जातिवाद भी खत्म होगा और एक दिन ऐसा आएगा जब देश में कोई दलित और पिछड़े नहीं बचेंगे। 
ऐसे सिस्टम को लागू करने से बाबा साहेब आंबेडकर और मंडल आयोग की जो आरक्षण के संदर्भ में असली विचार था वह सही मायने में लागू हो सकेगा। 

क्या 2021 में जाति आधारित जनगणना होना चाहिए या नहीं?
यदि सरकार आरक्षण पर पुनर्विचार करना चाहती है तो अवश्य होना चाहिए। सामाजिक - आर्थिक - जातीय जनगणना हो और जाति के आधार पर जितने भी कानून और पॉलिसी बना है सबका पुनरीक्षण हो। लेकिन यदि सरकार ये करना नही चाहती है तब आर्थिक आधार पर जनगणना होना चाहिए। क्योंकि जातीय आंकड़ा पता कर लेने पर सबको पता चल जायेगा कि किस राज्य किस जिले - कस्बे - गांव में कितने लोग किस जाति के हैं। फिर सारे राजनीतिक दल इस अनुसार चुनाव की तैयारी करेंगे और बस अपना फायदा करेंगे।

एल काफी लंबा हो गया है। इसे अब यहीं खत्म करते हैं। यदि आप मेरे विचारों से सहमत हैं तो शेयर अवश्य करें। यदि आप इन सारे तथ्यों के आधार पर यूट्यूब के लिए वीडियो बना सकते हैं, तो संपर्क करें। 
धन्यवाद। 

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