कुछ पत्रकार ऐसे हैं जो खुद को काफी स्वतंत्र, सरकार से सवाल पूछने वाले छवि में दिखाते हैं। कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने कभी किसी दबाव में आना स्वीकार नहीं किया और आज एकल पत्रकारिता कर रहे हैं, जो बस यूट्यूब और ट्विटर फेसबुक तक सीमित हैं।
कई ऐसे हैं जो बस टेक्स्ट फॉर्मेट में ट्विटर पर कंटेंट लिख रहे हैं।
कुछ फेमस और पुराने चेहरे जैसे रवीश कुमार, अजीत अंजुम, पुण्य प्रसून बाजपेई, बरखा दत्त, अभिसार शर्मा, श्याम मीरा सिंह, जैसे लोग हैं जो विपक्ष के बीच काफी फेमस हैं।
किसी भी पत्रकार का पत्रकारिता करना प्रोफेशन है। समर्थन करना, विश्लेषण करना, कमेंट करना, क्रिटिसाइज करना, इसी सब से उनका रोजी रोटी चलता है। चैनल में काम करने वाले पत्रकारों के ऊपर तो मैनेजमेंट का दबाव भी रहता है। उन्हें जैसा ओपिनियन बनाने को कहा जाता है वो वैसा करते हैं। ऐसे भी चैनल वालों को गोदी मीडिया ही कहा जा रहा है। INDIA गठबंधन के सपोर्टरों के अनुसार सारा मीडिया चैनल गोदी है, सारे सरकार के योजनाओं और कार्यों का समर्थन करने वाले लोग अंधभक्त है, बस वही लोग सबसे होशियार, देश प्रेमी और देश हित में बात करने वाले हैं। ख़ैर..
चलिए आज सरकार से करवे सवाल करने वाले कुछ स्वतंत्र एकल पत्रकारों का विश्लेषण करते हैं।
रवीश कुमार : यदि आप उन 50 लाख में से हैं जो इनका वीडियो रोज देखते हैं तो आप जल्द ही मानसिक रूप से चिड़चिड़े स्वभाव के हो सकते हैं। रवीश जी को बस कमियां ही दिखती है। इनका चैनल जा के देखिए, एक भी पॉजिटिव न्यूज नही मिलेगा। 30-40 मिनट के लंबे वीडियो में बस नेगेटिव बात, डर, संभावित खतरा, जैसे नेगेटिव चीजों पर ही फोकस रहता है। केजरीवाल के द्वारा एक संवैधानिक केंद्रीय संस्था का 9 समन इग्नोर करना इनको लोकतंत्र की जीत लगती है और दसवें पर गिरफ्तार हो जाना लोकतंत्र के लिए खतरा लगता है।
ये सभी से रोज निवेदन करते हैं कि हिंदी मीडिया को नही देखिए, और खुद सारे न्यूज का सोर्स हिंदी अखबार, हिंदी चैनल से लाते हैं।
रात में सबसे कहते हैं अखबार नही पढ़िए, खुद सुबह सुबह हिंदी अखबारों का कतरन ट्वीट करते हैं।
इस से 2 ही कंक्लूज़न निकलता है। पहला या तो रवीश जी विपक्ष का प्रवक्ता बन गए हैं.. या दूसरा ये कि चूंकि सरकार समर्थित और पॉजिटिव न्यूज दिखाने वाले बहुत से लोग हैं, इसलिए ये बस वैसे नेगेटिव न्यूज या प्वाइंट खोज खोज के दिखाते हैं जो किसी के ओपिनियन में नही होता।
इतना सबकुछ करने के बाद भी रवीश जी को विपक्ष से भी टाइम टू टाइम हेट मिलता रहता है क्योंकि बिहार यूपी हिंदी भाषी राज्यों में कास्ट पॉलिटिक्स चलती है और रवीश जी जाति से पांडे हैं।
ख़ैर.. मेरा व्यक्तिगत मानना यह है कि :
"यदि आप एक जिम्मेदार नागरिक बनना चाहते हैं तो बस एक पक्ष को देखकर नही बन सकते हैं। मैं तो ओपिनियन बेस्ड न्यूज देखने के ही पक्ष में नहीं हूं। यदि आप 10वीं 12 वीं तक पढ़े हुए हैं, और फैक्ट्स देखकर खुद का ओपिनियन बना सकते हैं तो आपको बस फैक्ट्स बेस्ड न्यूज देखना चाहिए। ओपिनियन देखिएगा तो कभी इनका भी बात ठीक लगेगा कभी उनका भी। फिर आपका हालत धोबी का गधा न घर का न घाट का वाला हो जायेगा। जो राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे हों बस उसी का ओपिनियन वाला न्यूज देखिए, नही तो बस फैक्ट्स देखिए, टेक्स्ट पढ़िए, और अपना विश्लेषण कीजिए।"
पुण्य प्रसून बाजपेई: किसी जमाने में ये बहुत बड़े कद के पत्रकार हुआ करते थे। आज इनके बारे में इस से ज्यादा स्पष्ट कोई बात नही है। ये पढ़िए
यूपी चुनाव, 2022 के समय मेरे मित्र पुण्य प्रसून वाजपेयी के यूट्यूब चैनल की इन हेडलाइंस को बिना हंसे पढ़ कर दिखाएं. आखिरी हेडलाइन सबसे अलग है. क्योंकि सिर्फ वही एक हेडलाइन सच है.
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) March 22, 2024
- क्यों योगी के लिए आसान नहीं रहा यूपी जीतना
- क्यों गोरखपुर छोड़कर योगी पकड़ना चाहते हैं अयोध्या की… pic.twitter.com/R1Hp6dzKbu
अजीत अंजुम : ये भी बस एकतरफा न्यूज दिखाते हैं। ट्विटर पर अगेंस्ट बीजेपी वाले हैंडल को कोट करते रहते हैं।
श्याम मीरा सिंह: इनका डॉक्यूमेंट्री बढ़िया रहता है। इनफॉर्मेटिव ज्यादा रहता है, खुद का तोड़ा मरोड़ा ओपिनियन कम रहता है।
अभिसार शर्मा : यह भी रवीश कुमार जैसा ही न्यूज करते हैं। एक टॉपिक पकड़ते है, उस पर 5 दिन में 8 वीडियो बनाते हैं फिर तबतक देश में कुछ नया हो जाता है और नया टॉपिक मिल जाता है।
कुछ न्यूज वेबसाइट्स भी है जैसे न्यूज क्लिक, न्यूज लॉन्ड्री, द वायर, अल्ट न्यूज और न जाने क्या क्या जो अगेंस्ट बीजेपी वाली खबरें चलाती है।
प्रो बीजेपी वाली चैनले और अगेंस्ट वाली दोनो में एक चीज कॉमन है, दोनो तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर एकतरफा ओपिनियन बनाती है। रीच और व्यूज दोनो को मिल रहा है। घर और खर्चे दोनो का चल जा रहा है। बाकी देश के युवाओं को इधर से उधर सब सोशल मीडिया पर टहलाने का जिम्मा लिए हुए है।
मेरे मन में एक सवाल अक्सर आता रहता है कि:
जैसे 28 विपक्षी दलों ने साथ आकर INDIA गठबंधन बनाया क्योंकि सबका लक्ष्य एक ही था मोदी सरकार को हटाना। भले ही उन सब में से कौन पीएम बनेगा कौन नही वो बाद का बात है बस मोदी नही बने। ठीक उसी तरह वह सारे पत्रकार जिसको लोकतंत्र खतरे में दिखता है, जिनको संविधान की चिंता है, जिनको सरकार से सैकड़ों सवाल हैं वह सब मिलकर क्यों न अपना एक मीडिया कंपनी बना लेते हैं। अपना टीवी चैनल। तब रिसर्च टीम भी कॉमन बन जायेगा, टीवी के माध्यम से भी रीच बढ़ेगा और सोशल मीडिया से भी और समाज में एक संदेश भी जायेगा।
लेकिन सबको अकेले अकेले कमाना है। एक ही आदमी को 4 अलग अलग चैनल पर 4 अलग अलग आदमी का वीडियो देख के 4 जगह ट्रैफिक और रीच देना है, स्टार्टअप योजना आने के बाद से सब अपना स्टार्टअप वाला धंधा करना चाहता है और सब अपने चैनल पर यह भी बोलता है कि स्टार्टअप योजना फेल हो गया है।
परंतु ऐसे पत्रकारिता के कारण अब स्टिंग ऑपरेशन जैसे चीज बिलकुल खत्म हो चुके हैं। एक समय था जब छुपी हुई कैमरे से भ्रष्टाचार उजागर किया जाता था पर आज तानाशाही, हिटलरशाही, लोकतंत्र खतरे में जैसे आरोप तो सरकार पर खूब लग रहे हैं लेकिन कोई पत्रकार कोई फैक्चुअल प्रूफ के साथ भ्रष्टाचार उजागर नहीं कर पा रहे हैं।
हां, वैसे भ्रष्ट नेता जो बीजेपी का दामन थाम लिए उनका भ्रष्टाचार अवश्य छुप गया, लेकिन जो परमानेंट सरकार में हैं, मंत्रीमंडल में हैं, उन सबका भ्रष्टाचार कोई पत्रकार नहीं खोज पा रहा।
आप पाठकों और आम जनता से यही निवेदन है कि सबको देखिए, सबको सुनिए और खुद कंक्लूजन निकालिए। किस बड़े घटना को किसने कवर नहीं किया, किस निरर्थक घटना को बिना मतलब का किसने ज्यादा तवज्जो दिया सबकुछ समझने की जरूरत है। हम आप जैसा सोचते हैं वैसा बिलकुल भी नहीं है। परदे के पीछे रंग बिरंगे कारनामे होते हैं। कौन किस से मिला हुआ है यह वक्त ही बताएगा।
अभी के लिए इतना ही। धन्यवाद!

