बीजेपी और बिहार! the cycle of rise and downfall.

BJP & BIHAR

हिंदी भाषी प्रदेशों में यदि बीजेपी कहीं सबसे ज्यादा कमजोर है तो वह बिहार है। बिहार में बीजेपी पार्टी का नेतृत्व करने वाले से लेकर जनप्रतिनिधियों तक सब जानता के बीच धीरे धीरे अपना विश्वास और खोते ही जा रहे हैं। और हो भी क्यों न.. केंद्र में 2014 में सरकार बनाने के बाद से बीजेपी ने सबसे कम यदि किसी स्टेट के लिए काम किया है तो वह बिहार है। बीजेपी बिहार के जो बड़े नेता थे वो टाइम टू टाइम अपना कद मेंटेन नही रख पाए, जो छोटे नेता थे उन में से बहुत कम को आगे बढ़ने दिया गया, बहुत कम को ऊपर पहुंचाया गया। 
कुछ बड़े फैक्ट्स के माध्यम से चलिए आज इसका विश्लेषण करते हैं। 

समृद्ध बिहार, विकसित बिहार, आत्मनिर्भर बिहार, बिहार जागे देश आगे, जैसे बड़े बड़े नारा लगाने के बाद भी बिहार के स्थिति परिस्थिति में कम ही बदलाव आया है। 

2014 में एनडीए गठबंधन को बिहार में 40 में से 31 सीट मिली। उस टाइम नीतीश कुमार की जदयू अकेले चुनाव लड़ी थी, वह मोदीजी के साथ नही थे। 
2019 में एनडीए गठबंधन को जिसमे बीजेपी और जदयू मुख्य रूप से थी 40 में से 39 सीट पर विजयी हुई। 
इतनी प्रचंड सीट मिलने के बाद भी पिछले 5 साल में बिहार के किसी भी लोकसभा सीट पर बाकी देश के तुलना में सबसे कम विकास कार्य हुआ है। 

बीजेपी बिहार के नेतागण आखिर करते क्या हैं?

सब दिनभर ट्वीट रीट्वीट खेलते हैं। मोदीजी का 4 ट्विटर अकाउंट है। एक नरेंद्रमोदी नाम से, दूसरा पीएमओ इंडिया, तीसरा नमो ऐप, चौथा नरेंद्रमोदी.इन उनके वेबसाइट की आईडी। इसके अलावा पार्टी का हैंडल, mygov इंडिया का 3-4 हैंडल, बाकी राज्य और केंद्र स्तर के सारे नेताओं का हैंडल। बीजेपी बिहार के सभी सांसद विधायक दिनभर बस एक दूसरे को शुभकामना देने, और बाकी हैंडल के ट्वीट को रीट्वीट करने का काम करते हैं। ख़ैर.. ये काम भी करने के लिए सबके पास स्टाफ ही होंगे। 

कुछ बड़े चेहरे वाले नेताओं का विश्लेषण:-



सुशील मोदी
एक समय था जब 2013- 14 में बिहार की मीडिया इनको नमो के साथ सुमो कह के पुकारती थी। 2014 तक फिर भी ये बीजेपी के काफी लोकप्रिय चेहरे में से एक थे। देश स्तर पर इनको लोग जानते थे। ये 2005 से 2013 तक बिहार के डिप्टी सीएम थे। 2004 के बाद से ये न विधानसभा चुनाव लड़े हैं न लोकसभा। विधानपरिषद और राज्यसभा सदस्य रहकर ये सरकार में रहे। 
वर्तमान में ये रोज सुबह उठकर ट्विटर पर पहले प्रेस रिलीज लिखते हैं। फिर अगले दिन वो लोकल अखबारों में छपती है। फिर वो सुबह सुबह अपनी बात छपे हुए सारे पेपर कटिंग का फोटो खींचकर ट्वीट करते हैं। 
इसके अलावा लालू परिवार पर प्रत्यक्ष रूप से आरोप लगाते हैं। क्षेत्र, जनता और सामाजिक समस्याओं से इनका कोई नाता अब नही रह गया है।
2014 के बाद से सुशील मोदी के लगातार डाउनफॉल का एक कारण यह भी है कि चूंकि इनका भी टाइटल मोदी था और नरेंद्र मोदी का पर्सनेलिटी मार्केटिंग इस तरह किया गया था कि नरेंद्र मोदी को बस एक नाम नही बल्कि एक ब्रांड बनाना था। आज कोई बीजेपी सरकार नही बोलती है, मोदी सरकार बोलती है। चुनाव पार्टी फेस पर नहीं बल्कि मोदी फेस पर लड़ा जाता है। देश एक 4 साल के बच्चे से लेकर 90 साल तक के बूढ़े सब मोदी मतलब बस एक नरेंद्र मोदी का फेस जानते हैं। इसलिए देशहित में नरेंद्र मोदी ब्रांड पर लंबे समय तक कोई आंच न आए इसलिए सुशील मोदी का कद छोटा किया गया। 



तारकिशोर प्रसाद : ये 2005 से आज तक लगातार विधायक हैं। बीजेपी संगठन में कभी इनको कोई बड़ा पद नही मिला। सिवाय 2020 से 2022 तक। इस बीच ये बिहार के डिप्टी सीएम रहे। लेकिन तब भी अपना कद नही बड़ा कर सके। इनको उस से पहले कोई नही जानता था, अब डेप्युटी सीएम से हटने के बाद भी कोई नही जानता है। 

रेणु देवी: यह बीजेपी की नेशनल वाइस प्रेसिडेंट रह चुकी है। यह भी तारकिशोर प्रसाद के साथ डेप्युटी सीएम बनी थी। बिहार की पहली महिला डेप्युटी सीएम थीं। बिहार में कास्ट पॉलिटिक्स के कारण बीजेपी ने तब इन दोनो को डेप्युटी सीएम बनाया था लेकिन इनका पर्सनेलिटी ब्रांडिंग और मार्केटिंग नही किया गया। आज अपने क्षेत्र के अलावा इनको भी बाकी जगह कोई नही जानता है। 



गिरिराज सिंह: ये चचा हिंदू हृदय सम्राट वाला छवि बनाने में लगे रहे हैं। ये केंद्र में अलग अलग मंत्री रहे। अभी भी सांसद हैं और फिरसे टिकट मिला है। ये भी ट्वीट ट्वीट खेलते हैं बस। इनका मुख्य काम बिहार में हिंदू मुस्लिम वाले मैटर को टाइम टू टाइम पावर देते रहने का है। विकास और अर्थव्यवस्था के नाम पर कभी इनका मन डोल जाता है तो बढ़ती जनसंख्या पर थोड़ा प्रकाश डालकर सारे समस्याओं का जड़ जनसंख्या को बोलकर निकल लेते हैं। 


हुकुमदेव नारायण यादव : ये 2019 तक मधुबनी से सांसद रहे। जबतक ये रहे इन्होंने बीजेपी के विकास और प्रसार में भरपूर योगदान दिया। जब पार्लियामेंट में यह प्रश्न करते थे या जवाब देते थे तब मनमोहन सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी तक सब इनकी भाषण को ध्यान से सुनते थे। 
2019 चुनाव में ये उम्र अधिक होने के कारण चुनाव से अलग हो गए और इनके बेटे अशोक यादव को बीजेपी ने टिकट दिया। बीजेपी में परिवारवाद का 2-4 ही उधारण है जिसमें एक ये भी है। इनके बेटे 2019 से मधुबनी के सांसद हैं, इस बार भी टिकट मिला है और जीत भी जायेंगे। वह न लोकसभा में बोलते हैं, न प्रश्न करते हैं, न केंद्र से योजनाओं को खींचकर अपने क्षेत्र तक लाते हैं। हालत यह है कि जो योजना मधुबनी के लिए पास भी हो जाती है वो यहां बहुत ही धीमी गति से शुरू होती है। 



सम्राट चौधरी : ये बीजेपी बिहार के वर्तमान में सबसे फायर नेता हैं, डेप्युटी सीएम हैं।  यदि बीजेपी इनका ब्रांडिंग अच्छे से करती है और इनको बिहार के भावी सीएम के रूप में पेश करती है तो निश्चित ही बिहार में बीजेपी के हालात कुछ सुधरेंगे। 

इन सबके अलावा कुछ बड़े नाम जैसे रविशंकर प्रसाद, विजय सिन्हा, राधामोहन सिंह, अश्विनी चौबे, राजीव प्रताप रूडी, नित्यानंद राय, शहनवाज हुसैन, रामकृपाल यादव, गोपालजी ठाकुर जैसे कई सीनियर नेता हैं। 

रामकृपाल यादव 2014 तक लालू जी के साथ थे, उसके बाद बीजेपी में आ गए और लगातार टिकट मिल रहा। 

गोपालजी ठाकुर ( दरभंगा से सांसद ) का काम बस मोटा वाला मखाना का माला और मिथिला पेंटिंग सप्लाई करने का है। भारत सरकार के जिस भी कार्यक्रम में इन दोनो चीजों की जरूरत होती है वह गोपालजी ठाकुर पहुंचाते हैं। संसद सत्र के समय ये बस इसी जुगाड में रहते हैं कि कब मोदी जी साथ फोटो खिंचवाने का मौका मिले, जिसको वो फेसबुक और ट्विटर पर 4 महीने घुमा सकें। 

बीजेपी बिहार की सबसे बड़ी समस्या:

❗किसी एक दो छवि को बड़े स्तर पर ब्रांडिंग और मार्केटिंग नही कर पाना सबसे बड़ी समस्या है। बिहार में विधानसभा का चुनाव भी बीजेपी 10 साल से मोदीजी के फेस और गुडविल पर लड़ रही है। इतने चेहरे में से एक दो को कम से कम राज्य स्तर पर एक्टिव और फेमस करना ही चाहिए था। 

❗बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व का बिहार के प्रति हमेशा उदासीन रवैया रहा है। मोदी जी खुद को कई राज्य, पूर्वोत्तर, दक्षिण, यूपी में साल में 8 बार जाते हैं, परंतु बिहार में 20 महीने के बाद फरवरी 2024 में आए थे वो भी पुराने योजनाओं का शिलान्यास करने। 
❗निर्मला सीतारमन, जो वित्त और कॉरपोरेट मंत्रालय देखती है, वो 6 साल बाद मार्च में बिहार आई थी, वो भी पटना में एक बैंक के ब्रांच का उद्घाटन करने। 
मंत्री जैसे पीयूष गोयल, नितिन गडकरी, योगीजी, स्मृति ईरानी, एस जयशंकर, अनुराज ठाकुर, राजनाथ सिंह, धर्मेंद्र प्रधान आदि तो चुनाव के टाइम में भाषण देने के अलावा कभी नही बिहार आते। अमित शाह कभी कभी आ भी जाते हैं। 

❗जो बिहार आपको 40 में से 39 सांसद से रहा है वहां न आप एयरपोर्ट दे रहे, न स्टेडियम, न हॉस्पिटल, न कॉलेज यूनिवर्सिटी। 

❗16 ट्रिपल आईटी (IIIT) और 16 AIIMS 2014 के बाद देशभर में बना है। जिसमे एक दरभंगा AIIMS भी है, और बिहार में कुछ नही बना। बाकी सारे 15 एआईआईएमएस में कॉलेज और हॉस्पिटल शुरू भी हो गया। लेकिन 2014 में ही घोषित दरभंगा एआईआईएमएस का अभी तक भूमि अधिग्रहण और निर्धारण भी नही हो सका है। केंद्र सरकार 350 एकड़ जमीन मांगी थी, तो नीतीश चचा 6 साल में बस 151 एकड़ जमीन का जुगाड कर के एआईआईएमएस बनाने को दिए हैं। 

❗यदि मोदीजी एक बार चाह लें तो किसी भी कंपनी का फैक्ट्री, कोई भी बड़ा यूनिवर्सिटी का कैंपस, बिहार में लगवा सकते हैं, लेकिन न वो चाहते हैं न बिहार के सांसद लोग उनको चाहने पर मजबूर करते हैं। 

❗नीति आयोग की आप कोई सी भी रैंकिंग या इंडेक्स उठाकर देख लीजिए: चाहे वो Health Index, Innovation Index, Export Index, district hospital index, school education quality index, water management index हो, चाहे revenue collection, gst collection की लिस्ट हो। सबमें बिहार आपको 20 के ऊपर ही दिखेगी। 5 साल पहले भी और आज भी। 

❗फिर नीति आयोग को क्यों न डांट पड़नी चाहिए? पहले योजना आयोग थी, फिर उसका नाम बदल के नीति आयोग कर दिया गया। NITI मतलब National Institution for Transforming India. अब न आप योजना बना पा रहे न नीति बना पा रहे, बिहार 5 साल पहले भी आपके रैंकिंग में नीचे ही था और आज भी है फिर 5 साल में आप बिहार के रैंकिंग में सुधार हो इसके लिए क्या योजना और नीति बनाए? जो राज्य बिजनेस सेट कर रही है वो तरक्की कर रही है, नीति आयोग का तो कोई योगदान ही नही है। सर्वे ही करना हो और रैंकिंग ही करना हो तो वह मीडिया चैनल भी कर लेती है। 

आज बिहार में बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिनको केंद्र में तो बीजेपी की सरकार चाहिए, परन्तु बिहार में अभी वर्तमान में जितने भी फेस हैं उनको नहीं देखना चाहते हैं. किसी ने भी पिछले 5-10 सालों में अच्छा कार्य नही किया है। मोदी लहर में सब जीतते गए, जीतने के बाद एक बार न क्षेत्र आए न संसद में बैठकर कोई योजनाओं को ही बिहार तक खींचे। 
यदि सभी सांसद चाह ले तो अपने क्षेत्र तक केंद्रीय योजनाओं को खींच के ला ही सकते हैं। पर किसी ने न कभी एप्लीकेशन डाला न प्रश्न उठाया। 

❗मधुबनी में 2 लोकसभा सीट है, मधुबनी और झंझारपुर। 10 साल से जिले में एक केंद्रीय विद्यालय खोलने की मांग है, 20 बार से ज्यादा बार ज्ञापन सौंपा गया है लेकिन आजतक ये लोग एक स्कूल नही बना सके। 

❗ नितिन गडकरी की मंत्रालय जो देश में सबसे फास्ट रोड बनाने के लिए जानी जाती है, उसका यदि नेशनल एवरेज 40 किलोमीटर हाईवे प्रतिदिन बनाने का है तो यह एवरेज बिहार में 5 किमी प्रतिदिन पर आकर रुक जाती है। 

❗टेक्सटाइल पार्क, आईटी पार्क, हाई स्पीड ट्रेन, कुछ नया नही बना। जिस सरकारी नौकरी के पीछे बिहार के अधिकतर युवा अपनी जवानी खपाते हैं, वो वेकेंसी भी धीरे धीरे कम होती जा रही है। जबकि सेंट्रल गवर्नमेंट में 9 लाख पद खाली है। 

❗ एक भी Special Economic Zone ( SEZ ) बिहार में नही बना। SEZ क्या होता है ये गूगल पर जाकर पढ़ लीजिए। 

कंक्लुजन
नही पता बीजेपी की क्या मजबूरी है, क्यों वो बिहार में खुद को मजबूत करना नही चाहती है। बिहार में कमजोर रहने का सबसे बड़ा नुकसान बीजेपी के लिए यही है कि भविष्य में कोई भी जनता आंदोलन बिहार से ही पनपेगी, जो 75 के जेपी आंदोलन जैसा रूप लेगी, देशव्यापी बनेगी और केंद्र से बीजेपी को उखाड़ फेंकेगी। अभी कई युवा नेता हैं बिहार में, जो जिस दिन साथ आ गए और जी जान लगा दिए उस दिन बीजेपी की नींद गायब हो जायेगी। 
बिहार को यदि राष्ट्रीय परिदृश्य के बराबर लाना है तो इस नए सरकार में बिहार पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। एक दो बड़े इंडस्ट्री, एक दो हॉस्पिटल, एक दो खेल का स्टेडियम, और एक दो प्राइवेट यूनिवर्सिटी का कैंपस बनवा दिया जाता है तो निश्चित ही बिहार की छवि में काफी सुधार आयेगी। 

आपका क्या मानना है? अपने विचार नीचे कमेंट करें।
धन्यवाद! 

This time, i am supporting #NDA for centre, but hates all faces in this list. And am totally sure that half from this face will loose. This time #ModiMagic won't work. Biharis doesn't need useless fellows jo bas modi gaan aur tweet tweet khelne k alawa kuch nahi kiye😬 https://t.co/cPTmr7g9Jp

— Ashish Anand (@retort_reply) March 24, 2024
 



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