क्यों नवनिर्मित राम मंदिर को आपको राजनीति के चस्में से नही देखना चाहिए?

22 जनवरी को रामलला अपने नवनिर्मित भवन में विराजमान हो गए। कई नेताओं और उनके भक्तों का मानना है की राम हमारे दिल में हैं फिर मंदिर क्यों? कई का मानना है कि मंदिर के जगह हॉस्पिटल क्यों नही? कई का सवाल है कि मोदी जी ही हीरो क्यों? ऐसे भिन्न भिन्न प्रकार के सवालों पर मेरे विचार जानिए!

बीजेपी पार्टी की शुरुआत और आइडियोलॉजी: संक्षिप्त में

1951 में डॉ श्यामा प्रसाद मुकर्जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ बनी। ये तब से ही कश्मीर के विशेषाधिकार के खिलाफ़ थी। 1977 में जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हुआ जो तब आपातकाल से आहत होकर सारी विपक्षी पार्टियों की दल बनी थी। 1980 में जनता पार्टी ने जनसंघ वालो पर इसलिए प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि ये सब RSS से जुड़े हुए थे। इस का विरोध करते हुए ये लोग जनता पार्टी से निकल गए और अपना पार्टी बना लिए जिसका नाम भारतीय जनता पार्टी हुआ।

सॉफ्ट हिंदुत्व, कश्मीर से धारा 370 हटाना, राम मंदिर बनाना, ये सब हमेशा से भाजपा के मैनिफेस्टो में रहा। 

संक्षिप्त: राम मंदिर आंदोलन 

1989-90 में राममंदिर आंदोलन तेज हो गया था। तब किसी को नहीं पता था की अटल बिहारी, मोदी, आडवाणी आदि भविष्य में इतने बड़े कद के व्यक्ति बनेंगे। 
तब विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बजरंग दल आदि के साथ बीजेपी सबने मिलकर राम मंदिर आंदोलन चलाया। अयोध्या में कई यज्ञ, अनुष्ठान आदि किए गए। आडवाणी का देशव्यापी रथयात्रा निकाला गया। 

तब किसको पता था कि 2019 में सुप्रीम कोर्ट का अपने पक्ष में फैसला आएगा, 2020 में भूमि पूजन होगा और 24 में प्राण प्रतिष्ठा भी। तब किसको पता था कि 2024 में प्राण प्रतिष्ठा के समय ये भाषण देने वाला बीजेपी का एक छोटा कार्यकर्ता 10 साल से भारत का पीएम रहेगा? तब किसको पता था कि 2024 तक अटल जी 3 बार और मोदीजी 2 बार फुल टाइम पीएम बन चुके रहेंगे? 

लेकिन आंदोलन का नेतृत्व इनलोगों ने किया। 1990 में 25 अक्टूबर से 5 नवंबर तक और 1992 में 25 नवंबर से 10 दिसंबर तक अयोध्या रणक्षेत्र बना रहा। रोज भीड़, भीड़ को रोकती पुलिस, पुलिस के साथ हाथा पाई, 1990 में तो यूपी सरकार ने गोलीबारी भी करवाई। ( मंदिर से जुड़ी तत्कालीन घटनाएं आप यूट्यूब आदि पर देखे ही होंगे नही तो सर्च कर के पढ़ लीजिए, देख लीजिए ). 

उस समय इन सबकी छवि आंदोलनकारी वाली थी। इन सबने 1992 में विवादित स्थल को तोड़ दिया। उसके बाद से पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में था और वहां किसी को भी जाने की मनाही थी।
चूंकि सरकार का झुकाव जिस बड़े मुद्दे पर रहती है, कोर्ट भी उसको प्रायोरिटी बेसिस पर निपटाती है ऐसा हमेशा से हुआ है। तो जब राइट विंग आइडियोलॉजी वाली बीजेपी पूर्ण बहुमत से 2014 में सरकार में आई फिर 2019 में लगातार 45 दिन तक मैराथन सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला रामलला के हक में आया। और मस्जिद निर्माण के लिए मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ जमीन देने का निर्देश यूपी सरकार को दिया गया। सरकार ने फैसले के 4 महीने के अंदर वह जमीन भी आवंटित कर दिया। अब मुस्लिम पक्ष कब मस्जिद निर्माण शुरू करे यह उनपर है।

मोदी जी ही क्यों हीरो हुए?

हीरो मोदी नही हुए, परिस्थिति ने उनको ही चुना। 90 से 90 तक के आंदोलन में मोदी, आडवाणी, बाजपाई, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी रितंभरा आदि सब थे। अब अटल जी नही रहे, आडवाणी जी भी अत्यंत उम्रदराज और बीमार ही रहते हैं। तो सबसे फिट मोदीजी ही बचे। राष्ट्रपति को भी मुख्य कर्ता बनाया जा सकता था, लेकिन लोकतंत्र में राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च प्रधान होता है। देश का पहला नागरिक होता है। प्रधानमंत्री तो आज है कल चुनाव होगा परसो बदल जायेगा। राममंदिर हमेशा से बीजेपी के वादों, इरादों में रहा। जब देशभर में इनको कोई नही जानता था तब भी और आज देश के सबसे बड़े पार्टी होने पर भी। तो इस कार्य को करने के लिए सबसे उपयुक्त मोदीजी ही हुए। सो उनके हाथ से सब हुआ। 

एक बड़ा बदलाव जो आपको नही दिखा?

आजतक आपने कभी ऐसा देखा था कि किसी मंदिर में प्रथम पूजा, प्राण प्रतिष्ठा आदि जैसे धार्मिक कार्य ब्राह्मण के अलावा कोई और जाति के लोग कर रहे हों? क्या आपने कभी मंदिर का भूमि पूजन किसी बैकवर्ड कास्ट के आदमी को करते हुए देखा था? मोदीजी के हाथ से यह कार्य होने से एक कितना बड़ा सामाजिक परिवर्तन हुआ यह कल्पना कीजिए। सामाजिक न्याय की बात करने वाले सारे नेताजी यह सामाजिक परिवर्तन नहीं कर पाए थे।
राजनीति में धर्म क्यों?

यह चीज हम आप जैसे जनता को समझने की जरूरत है कि हम धर्म के आधार पर राजनीति करने वाले को चुने या ना चुने। यह सबका व्यक्तिगत मामला है। कानून और संविधान नेताओं को धार्मिक बात करने की इजाजत देता है। 
जहां तक श्री राम का सवाल है, तो राम किसी एक धर्म के नही हैं। राम भारत की संस्कृति में हैं। राम सभ्यता में हैं। हिंदू मुस्लिम सिख सबके घर में यदि आस्तिक घर हो तो, राम चर्चा चलती ही है। देश के संविधान के ओरिजनल कॉपी के पेजों पर राम सीता हनुमान सबकी छवि बनी हुई है, और यह सर्वसम्मति से है। तो क्या जिस जगह श्री का जन्म हुआ, जिसको हमारी समाज, हमारी सरकार और हमारी सर्वोच्च न्यायालय मान चुका है, उस जगह पर उनका महल क्यों न बने। आपको सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट का पूरा टेक्स्ट पढ़ना चाहिए कि किस किस सबूत के आधार पर फैसला सुनाया गया था। 

मंदिर निर्माण का सारा खर्च समस्त विश्व से एकत्र किया हुआ हिंदुओं के दान से हुआ है। यदि आप चाहते हैं कि वहां हॉस्पिटल या स्कूल बन जाता, तो बहुत जल्द अगले कुछ वर्षों के अंदर राम मंदिर ट्रस्ट अवश्य अपनी हॉस्पिटल, यूनिवर्सिटी खोलेगी। जहां धर्म और जाति देखकर नही बल्कि बीमार देखकर इलाज किया जायेगा। 
आज भी देश में कई सारी हॉस्पिटल और कॉलेज, मंदिर के ट्रस्ट से चल रहा है। नाम मैं नही बताऊंगा, यह आप रिसर्च कीजिए। 

क्या इस से बीजेपी को वोट मिलेगा?

बेशक, वह सारे हिन्दू परिवार को 1990 से संपूर्ण घटना देख रहे थे, वह सारे परिवार जिनकी आस्था के केंद्र में राम हैं, उनकी संवेदना बीजेपी को मिलेगी ही। बीजेपी और मोदी को बॉयकॉट करने के चक्कर में जो राम और कृष्ण को भी नही मान पा रहे उनके लिए ये थोड़ा तो दुखद अहसास हो ही सकता है। 
बाकी आप खुद शिक्षित बनिए, आप मंदिर मजीद धर्म के आधार पर वोट नही दीजिए। समाज में बाकियों को भी शिक्षित कीजिए, आपका भी कर्तव्य है उसको पूरा कीजिए। ऐसे कई लोग हैं जो 22 को जश्न मनाए हैं लेकिन वो बीजेपी के वोटर नही हैं। आप खुद जिस चस्मा से देखेंगे आपको वैसा ही सब दिखेगा। आप इसको आस्था के सेंस में लीजिए। आप खुद को ऐसा बनाइए कि एक घटना के आधार पर आप वोट न करें बल्कि 5 साल के रिपोर्ट कार्ड का विश्लेषण करने के बाद वोट करें। 

फिलहाल के लिए इतना ही।
जय सियाराम 🙏

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