अंबेडकरवाद पर मेरे विचार।

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आज अम्बेडकर जी की जयंती है। लाकडाउन के कारण अच्छे से नहीं मनाया जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अम्बेडकर अद्वितीय प्रतिभा के धनी, महानायक, विद्वान, दार्शनिक, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, लोकप्रिय राजनीतिज्ञ, समाजसेवी, देश के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री, भारतीय संविधान के जनक हैं। 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जिसके वो प्रबल हकदार थे तथा उन्हें पहले दिया जाना चाहिए था।
कुछ सवर्णों को या उच्च जाति के लोगों को ( ध्यान रहे की यहां मुझे सवर्ण या उच्च जाति जैसे जातिसूचक शब्द का प्रयोग करने का संविधानिक अधिकार है) अम्बेडकर के व्यक्तित्व से घृणा होती है। इसका मुख्य कारण संविधान में प्रदत्त आरक्षण की व्यवस्था है। मैं इस मुद्दे पर आज अपना विचार रखूंगा। 
लंदन स्कूल ऑफ इकोॉमिक्स से ग्रेजुएट होने वाले वो पहले भारतीय थे। उनके द्वारा लिखी बुक के आधार पर 1935 में भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुई जो की आज पूरे देश की मौद्रिक प्रणाली को संचालित करती है। संविधान सभा के प्रारूप समिति में 7 लोग थे तथा अम्बेडकर उसके चीफ थे। लेकिन 7 लोग में से बहुत कम लोग ही कार्य में शामिल हुए, किन्हीं का देहांत हो गया तो कोई बहुत दूर में थे। अम्बेडकर जी ने 60 देशों के संविधान का अध्यन किया था। उनके अनुसार संविधान कितना सटीक और बेहतर है ये उसको लागू करने वाले पर निर्भर है। आज भी उनके इस कथन की प्रासंगिकता को देख सकते हैं। अम्बेडकर जी देश का विभाजन तथा अनुक्षेद 370 के तहत कश्मीर को मिलने वाले विशेष महत्व के पक्ष में नहीं थे। आजादी के बाद 1956 में वह अपने अनुयायियों के साथ हिन्दू धर्म से आहत होकर बौद्ध धर्म को अपना लिया। उन्हें इस्लाम तथा इसाई धर्म की ओर से शामिल होने का प्रस्ताव मिला था लेकिन उन्होंने धार्मिक राजनीति न करने के नाते पूर्ण रूप से भारत में जन्मे बौद्ध धर्म को अपना लिया।
आरक्षण:- उस समय की जो सामाजिक व्यवस्था थी उसके अनुसार समाज के सभी वर्गों को समानता का अधिकार प्रदान करने के लिए हाशिए वर्ग तथा दबे कुचले वर्ग को मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण आवश्यक था। बाबा साहेब ने मात्र 10 साल के लिए आरक्षण का प्रस्ताव रखा था तथा उसके बाद इसकी समीक्षा करने के बाद इसे चरणबद्ध तरीके से खत्म करना था। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार किसी भी राज्य में 50 प्रतिसत से ज्यादा आरक्षण नहीं होना चाहिए। परन्तु आज बहुत सारे राज्य इस सीमा को पार कर चुके हैं।
आज वोट बैंक इस क़दर हावी हो गया है कि जातिवाद समाज में दिख तो नहीं रहा है पर राजनैतिक फायदा के लिए नेताओ द्वारा जातिवाद को बढ़ावा दिया जाता है। इस पूरे चीज़ की एक सटीक समीक्षा करने की जरूरत है आज के परिदृश्य में। जिस प्रकार आर्थिक रूप से गरीब सवर्णों को 10 प्रतिसत आरक्षण का प्रस्ताव है उसी तरह सामाजिक आधार को खत्म करके सभी जातियों के बीच आर्थिक आधार पर यह लागू होना चाहिए। यदि जाति आधारित आरक्षण खत्म हो जाएगा तो दलित, महादलित, पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, क्रीमी लेयर, सवर्ण, अनुसूचित जाति, जनजाति जैसे शब्द संविधान से निकल जाएंगे, इससे अलग अलग जातियों को अलग अलग प्रलोभन देकर राजनीति करने वाले डगमगा जाएंगे। 
  कुछ लोग आज भी कमजोर ही हैं क्युकी उनको लाभ नहीं मिल पाता है, उनके हक का लाभ बीच में ही गटक लिया जाता है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो लाभ मिलने के कारण खुद को पिछड़ा साबित करने में लगे हुए हैं। जब हम खुद को पिछड़ा घोषित करने में लगे रहे तो देश आगे कैसे बढ़ सकता है।
आरक्षण का लाभ किसी एक जगह मिलना चाहिए, या तो शिक्षा में या नौकरी में। आज पहले शिक्षा के बाद नौकरी फिर प्रोमोशन सब जगह एक आदमी इसका लाभ उठा सकता है जो कि आज के वक़्त के अनुसार गलत है। 
ये बात सबको पता है पर कोई राजनीतिक दल इस बात को नहीं उठा सकती है। क्युकी बाकी दल इसका जबरदस्त विरोध करेंगे। किसी भी योजना से सबको खुश नहीं किया जा सकता है परन्तु जो सबसे ज्यादा लोगो के हित में हो वो योजना तो जरूर लागू होना चाहिए। जिस क्षेत्र में ज्ञान और कौशल के बदौलत नौकरी हो उसमे तो एकदम ही आरक्षण नहीं होना चहिए। 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि भारत के 53 प्रतिसत एलोपैथी डॉक्टर काबिल नहीं है। यूपीएससी परीक्षा के रिजल्ट के समय भी इस पर विवाद होता है। 
 मेरे विचार से आरक्षण जायज़ है लेकिन बस शिक्षण संस्थानों में ही। जब वो व्यक्ति आरक्षण के बदौलत अच्छी शिक्षा ग्रहण कर लेता है तो पुनः उसे नौकरी में आरक्षण की क्या जरूरत?

एक प्रचलित कथन है:- 
धन्य हैं बाबा अम्बेडकर आप
दलितों के बाप
चपरासी बनने के लिए BA पास
और देश चलाने के लिए अंगूठा छाप।

उस समय में शिक्षा का स्तर कम था। आज चुनाव लरने के लिए तथा मंत्री आदि बनने के लिए भी शिक्षा का एक स्तर होना बहुत जरूरी है। और इसमें तो सुधार होना ही चाहिए।

अम्बेडकर जी का व्यक्तित्व आदर्श था। एक ही आदमी में हम सब कुछ सही नहीं खोज सकते हैं। जो सवर्ण उनका विरोध करते हैं उनको ये जानना चाहिए कि बाबा साहेब को बड़ा बनाने में भी बहुत सवर्णों का हाथ था जोकि बाबा साहेब को पसंद करते थे। बाबाजी को अम्बेडकर टाइटल भी एक सवर्ण ने ही दिया था। आज के राजनीतिक माहौल के कारण लोग उनकी बुराई करने लगे हैं जो कि सही नहीं है। हमे अपने संविधान के निर्माता जिसके तहत हमे इतने सारे अधिकार प्रदान किए गए हैं, उसके स्तंभ बाबा साहेब ही हैं। जिनको आरक्षण का लाभ मिल रहा है परन्तु वो उतने सक्षम हो चुके हैं कि बिना लाभ के भी रह सकते हैं तो उनको आरक्षण छोड़ देना चाहिए। जीतन राम मांझी , रामविलास पासवान जैसे नेताओं ने घोसना के रखा है कि उनके परिवार अब आरक्षण का लाभ नहीं लेंगे। ऐसे ही और लोगो को आगे आना चाहिए।
जय भीम। 

कृपया पूरा पढ़ने के बाद कॉमेंट करें।
आशीष जी
(मधुबनी)

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